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Tuesday, June 11, 2019

Naval Ship Repair Yard Apprentice Offline Form 2019


Naval Ship Repair Yard Recruitment 2019 – 172 Apprentice Posts


Name of the Post: Naval Ship Repair Yard Apprentice Offline Form 2019
Post Date: 11-06-2019
LAST DATE: 23-07-2019
Total Vacancy: 172
Qualification-  Candidates Should Posseses Matric/ 10th Class, ITI.

Naval Ship Repair Yard Recruitment 2019: Naval Ship Repair Yard has invited applications for recruitment to the post of Apprentice. All Interested candidates can apply to the posts through the prescribed format on or before 23 July 2019.
Total no. of posts – 172
  • Electrician – 13 Posts
  • Electronic Mechanic – 17 posts
  • Machinist – 9 Posts
  • Turner – 7 Posts
  • Welder – 10 posts
  • Painter (General) – 8 posts
  • Electroplater – 5 Posts
  • Mechanic Motor Vehicle – 2 Posts
  • Mechanic Refrigration and Air Conditioning – 8 Posts
  • Fitter – 18 Posts
  • Computer Operation of Programming Assistant – 13 Posts
  • Shipwright/Carpenter – 12 Posts
  • Sheet Metal Worker – 8 Posts
  • Diesel Mechanic – 16 Posts
  • Tailor (General) – 4 Posts
  • Cutting and Sewing Machine Operator – 4 Posts
  • Mechanic Instrument – 6 Posts
  • Electrician – 6 posts
  • Mechanic Radio and Rodar Aircraft – 6 Posts
NotificationA
Official Website

फैराडे का विद्युतचुम्बकीय प्रेरण का नियम

फैराडे का विद्युतचुम्बकीय प्रेरण का नियम


फैराडे का विद्युतचुम्बकीय प्रेरण का नियम या अधिक प्रचलित नाम फैराडे का प्रेरण का नियम, विद्युतचुम्बकत्व का एक मौलिक नियम है। ट्रान्सफार्मरोंविद्युत जनित्रों आदि की कार्यप्रणाली इसी सिद्धान्त पर आधारित है। इस नियम के अनुसार,
किसी बन्द परिपथ में उत्पन्न विद्युतवाहक बल (EMF) उस परिपथ से होकर प्रवाहित चुम्बकीय फ्लक्स के परिवर्तन की दर के बराबर होता है।
विद्युतचुम्बकीय प्रेरण के सिद्धान्त की खोज माइकल फैराडे ने सन् १८३१ में की, और जोसेफ हेनरी ने भी उसी वर्ष स्वतन्त्र रूप से इस सिद्धान्त की खोज की।
फैराडे ने इस नियम को गणितीय रूप में निम्नवत् प्रस्तुत किया -

जहाँ
 विद्युतवाहक बल है (वोल्ट में)
ΦB परिपथ से होकर गुजरने वाला चुम्बकीय फ्लक्स है (वेबर / Weber / (Wb) में)
उत्पन्न विद्युतवाहक बल की दिशा के लिये लेंज का नियम लागू होता है। संक्षेप में लेंज का नियम यही कहता है कि उत्पन्न विद्युतवाहक बल की दिशा ऐसी होती है जो उत्पन्न करने वाले कारण का विरोध कर सके। उपरोक्त सूत्र में ऋण चिन्ह इसी बात का द्योतक है।

उन्नीसवीं शती के दिनों की प्रेरण कुण्डली(Induction coil) जो भौतिकी की कक्षाओं में प्रेरण के बारे में जानकारी देने के लिये प्रयोग की जाती थी
==फैराडे-न्यूमान-लेंज नियम==law

समीकरणों में प्रयुक्त भौतिक राशियों का अर्थ
वास्तव में 'फैराडे का नियम' कई चरणों में विकसित होने के बाद अपने वर्तमान रूप में आया है। १८३१ में फैराडे द्वारा प्रस्तुत प्रेरण का नियम के अनुसार किसी बन्द परिपथ में उत्पन्न विभव उस परिपथ को पार करने वाले चुम्बकीय फ्लक्स रेखाओं की संख्या के समानुपाती होता है। फैराडे ने यह नियम मौखिक रूप से दिया था और इसमें 'चुम्बकीय फ्लक्स रेखाओं की संख्या' की बात थी जिस परिकल्पना को उसने ही विकसित किया था। इसी कारण अकादमिक जगत में उसकी संकल्पना का प्रसार नहीं हो पाया। १८४५ में जाकर न्यूमान ने इस नियम को गणितीय रूप में लिखा-
जहाँ , चुम्बकीय फ्लक्स है जिसे निम्नलिखित ढंग से परिभाषित किया जाता है-
यहाँ तल  कोई भी तल है जिसके किनारे पर उपरोक्त बन्द परिपथ स्थित है। विभवान्तर की परिभाषा का उपयोग करते हुए, निम्नलिखित समीकरण लिख सकते हैं-[1]
जहाँ E परिपथ के किसी बिन्दु पर विद्युत क्षेत्र है। स्टोक्स प्रमेय का उपयोग करते हुए फैराडे के नियम को निम्न प्रकार से भी लिख सकते हैं:
यहाँ प्रयुक्त ऋण चिह्न (-) हेनरिक लेंज का मौलिक योगदान है। लेंज ने बताया कि यदि परिपथ को बन्द किया जाय तो परिपथ में उत्पन्न धारा की दिशा ऐसी होती है जो उस कारण का विरोध करती है जिसके कारण वह उत्पन्न हुई है।

विद्युत जनित्र

विद्युत जनित्र

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बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक दिनों का अल्टरनेटर, जो बुडापेस्ट में बना हुआ है।
विद्युत जनित्र (ईलेक्ट्रिक जनरेटर) एक ऐसी युक्ति है जो यांत्रिक उर्जा को विद्युत उर्जा में बदलने के काम आती है। इसके लिये यह प्रायः माईकल फैराडे के विद्युतचुम्बकीय प्रेरण (Electromagnetic Induction) के सिद्धान्त का प्रयोग करती है। विद्युत मोटर, इसके विपरीत विद्युत उर्जा को यांत्रिक उर्जा में बदलने का कार्य करती है। विद्युत मोटर एवं विद्युत जनित्र में बहुत कुछ समान होता है और कई बार एक ही मशीन बिना किसी परिवर्तन के दोनो की तरह कार्य कर सकती है।
विद्युत जनित्र, विद्युत आवेश को एक वाह्य परिपथ से होकर प्रवाहित होने के लिये वाध्य करता है। लेकिन यह आवेश का सृजन नहीं करता। यह जल-पम्प की तरह है जो केवल जल-को प्रवाहित करने का कार्य करती है, जल पैदा नहीं करती।
विद्युत जनित्र द्वारा विद्युत उत्पादन के लिये आवश्यक है कि जनित्र के रोटर को किसी बाहरी शक्ति-स्रित की सहायता से घुमाया जाय। इसके लिये प्रत्यागामी इंजन(रेसिप्रोकेटिंग इंजन), टर्बाइन, वाष्प इंजन, किसी टर्बाइन या जल-चक्र (वाटर-ह्वील) पर गिरते हुए जल, किसी अन्तर्दहन इंजन, पवन टर्बाइन या आदमी या जानवर की शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है।
किसी भी स्रोत से की गई यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत् ऊर्जा में परिवर्तित करना संभव है। यह ऊर्जा, जलप्रपात के गिरते हुए पानी से अथवा कोयला जलाकर उत्पन्न की गई ऊष्मा द्वारा भाव से, या किसी पेट्रोल अथवा डीज़ल इंजन से प्राप्त की जा सकती है। ऊर्जा के नए नए स्रोत उपयोग में लाए जा रहे हैं। मुख्यत:, पिछले कुछ वर्षों में परमाणुशक्ति का प्रयोग भी विद्युत्शक्ति के लिए बड़े पैमाने पर किया गया है और बहुत से देशों में परमाणुशक्ति द्वारा संचालित बिजलीघर बनाए गए हैं। ज्वार भाटों एवं ज्वालामुखियों में निहित असीम ऊर्जा का उपयोग भी विद्युत्शक्ति के जनन के लिए किया गया है। विद्युत्शक्ति के उत्पादन के लिए इन सब शक्ति साधनों का उपयोग, विशालकाय विद्युत् जनित्रों द्वारा ही हाता है, जो मूलत: फैराडे के 'चुंबकीय क्षेत्र में घूमते हुए चालक पर वेल्टता प्रेरण सिद्धांत पर आधारित है।


    सिद्धान्त


    एक फेज वाले एक सरल जनित्र की कार्यविधि
    विद्युत जनित्र का कार्य, फैराडे के विद्युतचुम्बकीय प्रेरण के नियम पर आधारित है। यह सिद्धान्त निम्नलिखित रूप में व्यक्त किया जा सकता है :
    'यदि कोई चालक किसी चुंबकीय क्षेत्र में घुमाया जाए, तो उसमें एक वि.वा.ब. (विद्युत् वाहक बल) की उत्पत्ति होती है; और यदि संवाहक का परिपथ पूर्ण हो तो उसमें धारा का प्रवाह भी होने लगता है।'
    इस प्रकार विद्युत् शक्ति के जनन के लिए तीन मुख्य बातों की आवश्यकता है :
    • (१) चुंबकीय क्षेत्र, जिसमें चालक घुमाया जाए,
    • (२) चालक
    • (३) चालक को चुंबकीय क्षेत्र में घुमानेवाली यांत्रिक शक्ति
    यह भी स्पष्ट है कि विद्युत्शक्ति का उत्पादन व्यावहारिक बनाने के लिए चालक में प्रेरित विद्युतवाहक बल की मात्रा पर्याप्त होनी चाहिए। इसकी मात्रा, चालक की लंबाई, चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता (जिसे अभिवाह घनत्व के रूप में मापा जाता है) और चालक के वेग पर निर्भर करती है। वास्तव में इसे निम्नलिखित समीकरण से व्यक्त किया जा सकता है :
    E = B l v
    जहाँ, E= विद्युतवाहक बल (emf), B=चुंबकीय अभिवाह का घनत्व, l =चालक की लंबाई तथा v=चालक का वेग (क्षेत्र के लंबवत्)
    इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि व्यावहारिक रूप में चालक की लंबाई एवं वेग दोनों ही बहुत अधिक होने चाहिए और साथ ही चुंबकीय अभिवाह घनत्व भी अधिकतम हो। चुंबकीय क्षेत्र की अधिकतम हो। चुंबकीय क्षेत्र की अधिकतम सीमा उसके संतृप्त होने के कारण निर्धारित होती है। चालक की लंबाई बढ़ाना भी व्यावहारिक रूप से संभव नहीं, परंतु एक से अधिक चालक को इस प्रकार समायोजित किया जा सकता है कि उनमें प्रेरित वि.वा.ब. जुड़कर व्यावहारिक बन जाए। वस्तुत: जनित्र में एक चालक के स्थान पर चालक का एक तंत्र होता है, जो एक दूसरे से एक निर्धारित योजना के अनुसार संयोजित होते हैं। इन चालकों को धारण करनेवाला भाग आर्मेचर (Armature) कहलाता है और इनकी संयोजन विधि को आर्मेचर कुंडलन (Armature Winding) कहते हैं।
    वेग अधिक होने से, घूमनेवाले चालकों पर अपकेंद्र बल (centrifugal force) बहुत अधिक हो जाता है, जिसके कारण आर्मेचर पर उनकी व्यवस्था भंग हो जा सकती है। अत: इन्हें आर्मेचर पर बने खाँपों (slots) में रखा जाता है। आर्मेचर चालकों को धारण करने के साथ ही उनको घुमाता भी है, जिसके लिए उसका शाफ्ट (shaft) यांत्रिक ऊर्जा का संभरण करनेवाले यंत्र के शाफ्ट से युग्मित (coupled) होता है। यह यंत्र पानी से चालनेवाला टरबाइन, या भाप से चालनेवाला टरबाइन या इंजन, हो सकता है। किसी भी रूप में उपलब्ध यांत्रिक ऊर्जा को आर्मेचर का शाफ्ट घुमाने के लिए प्रयोग किया जा सकता है। इस प्रकार विभिन्न प्रकार के यंत्र जनित्र को चलाने के लिए प्रयुक्त किए जाते हैं। इन्हें प्रधान चालक (Prime Mover) कहते हैं। विभिन्न प्रकार के इंजन, जैसे वाष्प इंजन, डीजल इंजन, पेट्रोल इंजन, गैस टरबाइन इत्यादि मशीनें, प्रधान चालक के रूप में प्रयुक्त की जाती हैं और इनकी यांत्रिक ऊर्जा को जनित्र द्वारा विद्युत् ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है।

    दिष्टधारा जनित्र (DC Generator)[संपादित करें]



    आर्मेचर चुंबकीय पदार्थ का बना होता है, जिससे चुंबकीय क्षेत्र के अभिवाह का वाहक हो सके। सामान्यत: यह एक विशेष प्रकार के इस्पात का बना होता है, जिसे आर्मेचर इस्पात ही कहते हैं।
    चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करने के लिए भी विद्युत् का ही प्रयोग व्यावहारिक रूप में किया जाता है, क्योंकि इससे स्थायी चुंबक की अपेक्षा कहीं अधिक तीव्रता का चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न किया जा सकता है और क्षेत्रधारा का विचरण कर सुगमता से क्षेत्र का विचरण किया जा सकता है। इस प्रकार जनित वोल्टता का नियंत्रण सरलता से किया जा सकता है। चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करने के लिए क्षेत्र चुंबक (field magnets) होते हैं, जिनपर क्षेत्रकुंडली वर्तित होती है। इन कुंडलियों में धारा के प्रवाह से चुंबकीय क्षेत्र की उत्पत्ति होती है। एकसम क्षेत्र के लिए क्षेत्र चुंबकों का आकार कुछ गोलाई लिए होता है और उनके बीच में आर्मेचर घूमता है। आर्मेचर तथा क्षेत्र चुंबकों के बीच वायु अंतराल (air gap) न्यूनतम होना चाहिए, जिससे क्षेत्रीय अभिवाह का अधिकांश आर्मेचर चालकों को काट सके और आर्मेचर में जनित वोल्टता अधिकतम हो सके।
    क्षेत्र कुंडली में धारा प्रवाह को उत्तेजन (Excitation) कहते हैं। यह उत्तेजन किसी बाहरी स्रोत (बैटरी शृखंला अथवा विद्युत् के उस जनित्र के अलावा कोई दूसरे स्रोत) से संयोजित करने पर किया जा सकता है अथवा स्वयं उसी जनित्र में उत्पन्न होनेवाली धारा का ही एक अंश उत्तेजन के लिए भी प्रयुक्त किया जा सकता है। बाहरी स्रोत से उत्तेजित किए जानेवाले जनित्र को बाह्य उत्तेजित जनित्र कहा जाता है और स्वयं उसी जनित्र में जनित धारा का भाग उपयोग करनेवाले जनित्र को स्वत:उत्तेजित जनित्र (Self-excited Generator) कहा जाता है। स्वत: उत्तेजन की प्रणालियाँ भी क्षेत्र कुंडली और आर्मेचर के सयोजनों के अनुसार भिन्न भिन्न होती हैं। यदि क्षेत्र कुंडली आर्मेचर से श्रेणी (series) में संयोजित हों, तो उसे श्रेणी जनित्र (Series Generator) कहा जाता है। यदि दोनों में पार्श्व संबंधन हो, तो उसे शंट जनित्र (Shunt Generator) कहते हैं। यदि क्षेत्र कुंडली के कुछ वर्त आर्मेचर से श्रेणी में और कुछ उससे पार्श्व संबंधित हों, तो ऐसे जनित्र को संयुक्त जनित्र (Compound Generator) कहते हैं। उत्तेजन की इन विभिन्न विधियों से विभिन्न लक्षण प्राप्त होते हैं। बाह्य उत्तेजित जनित्र में क्षेत्रधारा आर्मेचर धारा अथवा भारधारा पर निर्भर नहीं करती। अत: उसमें जनित वोल्टता भार (load) विचरण से स्वतंत्र होती है। यदि क्षेत्रधारा को एक समान रखा जाए और जनित्र में जनित वोल्टता भी एक समान रहेगी। शंट जनित्र में भी लगभग ऐसा ही लक्षण प्राप्त होता है और भार विचरण का प्रभाव जनित वोल्टता पर अधिक नहीं होता। श्रेणी जनित्र में, भारधारा ही आर्मेचर और क्षेत्र कुंडलियों में प्रवाहित होती है। अत:, यह क्षेत्रधारा भार पर निर्भर करती है और इस प्रकार जनित वोल्टता भार बढ़ने के साथ बढ़ती जाती हैं।
    संयुक्त जनित्र में शंट एवं श्रेणी जनित्रों के बीच के लक्षण होते हैं। क्षेत्र कुंडली के शंट और श्रेणी वर्तों का व्यवस्थापन कर उनके बीच का कोई भी लक्षण प्राप्त किया जा सकता है। व्यवहार में संयुक्त जनित्रों का ही अधिक प्रयोग होता है।
    चुंबकीय क्षेत्र में एकसमान वेग से घूमनेवाले चालक में जनित वोल्टता, चालक के चुंबकीय अभिवाह को काटने की गति पर निर्भर करती है। यह गति, वस्तुत:, किसी क्षण भी चालक के चुंबकीय अभिवाह के सापेक्ष स्थित पर निर्भर करती है। जब चालक एकसमान वेग से घूम रहा हो, तो वह एक चक्कर में दो बार अभिवाह के लंबवत् होगा और इस स्थिति में वह अधिकतम अभिवाह काटेगा, तथा जब वह कोई भी अभिवाह नहीं काटेगा, दो बार उसके समांतर होगा। इस प्रकार एक चक्कर में दो बार उसमें जनित वोल्टता शून्य और अधिकतम के बीच विचरण करेगी, जैसी चित्र ३. में दिखाया गया है। इस प्रकार के विचरण को प्रत्यावर्ती विचरण कहते हैं। आर्मेचर चालकों में भी इसी प्रकार की प्रत्यावर्ती वोल्टता जनित होती है और उसे दिष्ट रूप देने के लिए दिक्परिवर्तक (commutator) का प्रयोग किया जाता है।
    दिक्परिवर्तक आर्मेचर के शाफ्ट पर ही आरोपित होता है। उसमें बहुत से ताम्रखंड (copper segments) होते हैं, जो एक दूसरे से विद्युतरुद्ध (insulated) होते हैं। आर्मेचर के वर्तन के अंत्यसंयोजन (end connection) इन खंडों से संयोजित होते हैं। दिक्परिवर्तक से संस्पर्श करनेवाले दो बुरुश होते हैं, जो आर्मेचर में जनित वोल्टता द्वारा प्रवाहित होनेवाली धारा को बाहरी परिपथ से संयोजित करते हैं। आर्मेचर चालकों का दिक्परिवर्तक से संयोजन इस प्रकार किया जाता है कि दोनों बुरुशों द्वारा इकट्ठी की जानेवाली धारा एक ही दिशा की होती है। इस प्रकार एक बुरुश धनात्मक धारा इकट्ठी करता है और दूसरा ऋणात्मक। इस आधार पर बुरुशों को भी धनात्मक एवं ऋणात्मक कहा जाता है। वस्तुत:, बुरुश विद्युत्धारा के टर्मिनल हैं, जो भार को जनित्र से संबद्ध करते हैं। ये बुरुशधारक (brush holder) पर आरोपित होते हैं और दिक्पविर्तक पर इनकी स्थिति बुरुश धारक द्वारा व्यवस्थापित की जा सकती है।

    विद्युत्चुम्बकत्व

    विद्युत्चुम्बकत्व

    विद्युत्चुम्बकत्व (Electromagnetism) या विद्युतचुम्बकीय बल (electromagnetic force) प्रकृति में पाये जाने वाले चार प्रकार के मूलभूत बलों या अन्तःक्रियाओं में से एक है। अन्य तीन मूलभूत बल हैं - प्रबल अन्योन्यक्रिया, दुर्बल अन्योन्यक्रिया तथा गुरुत्वाकर्षण। विद्युत्चुम्बकीय बल को विद्युत्चुंबकीय क्षेत्र की सहायता से अभिव्यक्त किया जाता है।
    विद्युतचुम्बकीय बल कई रूपों में देखने को मिलता है, जैसे विद्युत आवेशित कणों के बीच बल, चुम्बकीय क्षेत्र में रखे विद्युतवाही चालक पर लगने वाला बल आदि। विद्युत्चुम्बकीय बल को प्रायः दो प्रकार का बताया जाता है-
    • विद्युतस्थैतिक बल (electrostatic force) - जो स्थिर आवेशों पर लगता है, तथा
    • चुम्बकीय बल (magnetic force) - जो केवल गतिमान आवेशों पर लगता है।
    मूलभूत कणों के बीच लगने वाला बल विद्युत्चुम्बकीय बल ही होता है। क्वाण्टम विद्युत्गतिकी इन कणों के बीच लगनेवाले बल की व्याख्या करती है।

    प्रेरण



    प्रेरण


    वस्तुत: किसी वस्तु के भाव तथा गुण द्वारा उत्पन्न होनेवाले प्रभाव को प्रेरण (Induction) कहते हैं, जब कि दोनों वस्तुओं का संस्पर्श न हो। इस प्रकार जब कोई वस्तु दूसरी वस्तु से अलग होते हुए भी उसपर अपना प्रभाव आरोपित करती है, तब उसे प्रेरण कहा जाता है। विद्युत् इंजीनियरी में तीन प्रकार के प्रेरण प्रभाव होते हैं :

    • 1. विद्युत्स्थैतिक प्रेरण (Electrostatic Induction)
    • 2. चुंबकीय प्रेरण (Magnetic Induction)
    • 3. विद्युच्चुंबकीय प्रेरण (Electromagnetic Induction)
    विद्युत्स्थैतिक प्रेरण में कोई वस्तु, निकटवर्ती विद्युच्चालकों पर, आवेश (charge) प्रेरित करती है। जब कोई विद्युत्‌ आवेशित पदार्थ, पृथ्वी से विद्युतरोधी (insulated) किसी संचालक के निकट आता है, तब चालक के कुछ इलेक्ट्रॉन आवेशित हो जाते हैं और चालक के एक सिरे पर एकत्रित होकर पूरे चालक को ही आवेशित कर देते हैं। यह क्रिया, वास्तव में आवेशित हो जाते हैं और चालक के एक सिरे पर एकत्रित होकर पूरे चालक को ही आवेशित कर देते हैं। यह क्रिया, वास्तव में आवेशित पदार्थ द्वारा प्रेरण से दूसरे विद्युच्चालकों को आवेशित करने की है और विद्युत्स्थैतिक प्रेरण कहलाती है।
    चुंबकीय प्रेरण, चुंबकीय क्षेत्र में रखे हुए किसी चुंबकीय पदार्थ द्वारा चुंबकत्व ग्रहण करने की क्रिया है। यदि कोई चुंबकीय पदार्थ किसी दंड चुंबक (bar magnet) के पास लाया जाए, तो उसके ऊपर भी चुंबकीय प्रभाव हो जाएगा।
    विद्युच्चुंबकीय प्रेरण, विद्युत्‌ के चुंबकीय गुण का उपयोग कर प्रत्यावर्त धारा (alternating current) प्रवाहित हो रही हो, तो उसका चुंबकीय क्षेत्र भी धारा के अनुरूप प्रत्यावर्ती प्ररूप का होगा। इस प्रकार चुंबकीय अभिवाह (फ्लक्स / flux) का रूप भी प्रम्यावर्ती होगा। यह अभिवाह, निकटवर्ती दूसरी कुंडली के चालकों के साथ संबद्ध होकर अपने प्रत्यावर्ती स्वभाव के अनुरूप ही उनमें विद्युद्वाहक बल या वि.वा.व. (electromotive force or e. m. f.) उत्पन्न करता है। फ़ैरेडे के सिद्धांत के अनुसार, किसी चालक से संबद्ध अभिवाह में परिवर्तन, उसमें वि.वा.ब. की उत्पत्ति करता है; जिसका परिमाण, अभिवाह परिवर्तन की गति के बराबर होता है। इस प्रकार दोनों कुंडलियों में संस्पर्श न होते हुए भी और भिन्न परिपथ होते हुए भी, प्रेरण द्वारा दूसरी कुंडली में वि.वा.ब. की उत्पत्ति हो जाती है और उसका परिपथ पूर्ण होने की दशा में धारा भी प्रवाहित होने लगती है। इस धारा को दूसरी कुंडली के आर पार ए धारामापी (galvanometer) जोड़कर ज्ञात किया जा सकता है। धारामापी का संकेतक कुंडली में धारा की व्युत्पत्ति का संकेत करता है। प्रेरित वि.वा.ब. को एक सुग्राही विश्लेषण धारामापी (voltameter) द्वारा मापा जा सकता है। यह भी ज्ञात होगा कि वोल्टता का परिमाण, दोनों कुंडलियों की लपेट संख्या (number of turns) के अनुपात में है। यदि पहली कुंडली में 100 लपेटें हों और दूसरी में 1000, तो दूसरी कुंडली में प्रेरित वोल्टता पहली कुंडली में आरोपित वोल्टता से 10 गुणा अधिक होगी। विद्युत्‌ संभरण तंत्र (electric supply system) का सबसे महत्वपूर्ण उपकरण, परिणामित्र (transformer) इसी सिद्धांत पर आधारित है। इसके द्वारा कम वोल्टता की विद्युत्‌ शक्ति को अधिक वोल्टता पर परिवर्तित कर दूर दूर तक पारेषित किया जाता है और फिर उसी प्रकार उसे कम वोल्टता पर परिवर्तित कर उपयोग में लाया जा सकता है।
    विद्युच्चुंबकीय प्रेरण, दो रूप में हो सकता है। एक तो स्थैतिक रूप में, जैसा ऊपर कहा गया है, जिसमें दोनों कुंडलियाँ स्थैतिक होती हैं और वि.वा.ब. की उत्पत्ति, अभिवाह बंधता (flux linkage) में परिवर्तन के कारण होती है। ऐसा केवल प्रत्यावर्ती धारा में ही संभव है। यदि पहली कुंडली में दिष्ट धारा (direct current) प्रवाहित की जाए तो अभिवाह बंधताओं में परिवर्तन का प्रश्न ही नहीं उठता। परंतु अभिवाह की दिशा एवं परिमाण स्थिर होने पर भी यदि चालक चलनशील हो, तो अभिवाह के काटे जाने के फलस्वरूप, उसमें वि.वा.व. की उत्पत्ति होगी। वस्तुत:, अधिकांश विद्युत्‌ मशीनें इसी सिद्धांत पर आधारित है। यदि कोई चालक किसी चुंबकीय क्षेत्र में घूमता हो, तो उसमें एक वि.वा.व. की उत्पत्ति होती है। इस प्रकार उत्पन्न हुए वि.वा.व. को गतिकीत: प्रेरित वि.वा.व. (Dynamically Induced E.M.F.) कहते हैं और सभी विद्युज्जनित्र, इस सिद्धांत पर आधारित हैं।
    प्रेरण के सिद्धांत पर केवल वि.वा.व. की ही उत्पत्ति नहीं होती; वरन्‌ एक विभ्रमबल की उत्पत्ति भी हो सकती है। घूर्णी चुंबकीय क्षेत्र में चालकों पर यह बल क्रियाशील होता है, जो उन्हें घुमा सकता है। प्रेरण मोटर स्पष्टता इसी सिद्धांत पर आधारित है। यह सिद्धांत, वस्तुत:, विद्युत्‌ ऊर्जा के यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तन और यांत्रिक ऊर्जा के विद्युत्‌ ऊर्जा में परिवर्तन को व्यक्त करता है।




    Monday, June 10, 2019

    Department of Local Government, Punjab 350POST

    Department of Local Government, Punjab 350POST 




    Post Name- Clerk, Lineman, Asst Lineman & Other – 350 Posts

    Important Date-                      Last Date of Application - 20 June 2019
    Qualification - ITI, Any Degree


    Punjab Govt Jobs 2019: Punjab Government, Department of Local Government has invited applications for filing up backlog vacancies for specially-abled persons for various posts such as Clerk, Safai Karmchari, Peon and Other Posts in various Municipal Corporations and Municipal Councils - Nagar Panchayats in non-provisionalised cadre.
     Eligible and interested candidates can apply to the post in the prescribed format on or before 20 June 2019. More details can be checked through the detailed notification link given below.
    Vacancy Details
    • Safai Karmchari - 253 Posts
    • Belder, Mali, Mali-cum-Belder, Mali-cum-Chowkidar and Mali-cum-Belder-cum-Chowkidar – 51 Posts
    • Clerk – 24 Posts
    • Pump Operator, Assistant Pump Operation, Pump Driver and Tubewell Driver – 5 Posts
    • Peon – 11 Posts
    • Assistant Lineman – 2 Posts
    • Lineman – 1 Post
    • Mate Civil – 1 Post
    • Swasthak Sahayak – 1 Post
    • Skill Helper – 1 Post 

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    NCL Recruitment 2019 – Apply Online for 2482 Trade Apprentice Posts

    NCL Recruitment 2019 – Apply Online for 2482 Trade Apprentice Posts

    Name of the Post: Northern Coalfields Ltd Trade Apprentice Online Form 2019
    Post Date: 10-06-2019
    Total Vacancy: 2482
    संक्षिप्त जानकारी: नॉर्दर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड ने ट्रेड अपरेंटिस के रिक्त पदों की भर्ती के लिए एक रोजगार की अधिसूचना दी है।  वे उम्मीदवार जो रिक्ति विवरण में रुचि रखते हैं और सभी पात्रता मानदंडों को पूरा करते हैं, वे अधिसूचना और ऑनलाइन आवेदन पढ़ सकते हैं।

     और पढ़ें: NCL भर्ती 2019 - 2482 ट्रेड अपरेंटिस पदों के लिए ऑनलाइन आवेदन करें
    Northern Coalfields Limited 

     Trade Apprentice Vacancies 2019

    Important Dates
    Starting Date to Apply Online: 11-06-2019
    Last Date to Apply Online: 10-07-2019
    Qualification
    8th Class & ITI (Relevant Discipline)

    Vacancy Details
    Trade Total
    Welder (Gas & Electric) 162
    Electrician 1260
    Fitter 840
    Motor Mechanic 220
    Interested Candidates Can Read the Full Notification Before Apply Online
    Important Links

    Apply Online Available on 11-06-2019
    Notification Click here
    Official Website Click here

    AICET CITS 2019 Result आज होगा जारी, Check करे सबसे पहलेhttps://itiquizonline.blogspot.com/ पर





    CITS2019 Result will be available on 10.06.2019


    CTI Result 2019

    (Directorate General of Training, Govt of India)

    Course Name – All India Common Entrance Test for Craft Instructor Training Course (CTI 2019)

    AICET CITS 2019 Result आज होगा जारी, Check करे सबसे पहलेhttps://itiquizonline.blogspot.com/ पर

    IMPORTANT DATES

    Date of Examination – 01-June-2019

    VACANCY DETAILS

    Post Name – Admission for Craft Instructor Training Course through
    All India Common Entrance Test,  2019
    Trades Names
    Fitter- 560 posts
    Turner- 280 posts
    Machinist- 300 posts
    Machinist Grinder- 20 posts
    And various trades

    STATUS OF RESULT

    Available 

    Name of Examination

    Computer Based Online Examination

    Important Links

    Check Result

    Click Here http://www.nimionlineadmission.in/2019/index.htm 

    Available Soon

    Download Admit Card

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    Apply Online

    Registration II Login

    Download Notification

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    Official website

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    About CITS
    Overview
    Courses are offered by Central Institutes under DGT like NSTI's and IToT's to fulfill the objective of uplifting and upgrading the training standard of existing serving instructors of ITIs and Industry as well as those who aspire to become successful instructor in future in the Industrial Training Institutes (ITI’s). Admissions in Private IToTs will also be made through this entrance test only.

    Eligibility qualification: NTC/NAC (NCVT certificate in relevant trade) or Diploma / Degree from recognized Board of Technical Education/University or equivalent.

    Entrance Examination Fee:
    Rs. 500/- for General and all other candidates
    Rs. 300/- for SC / ST, PH and Women candidates

    Payment of Examination Fee:
    Candidates need to remit an application fee in any of the modes using Net Banking/Credit Card/Debit Card

    Reservation of seats:

    As per Central Government Reservation Norms


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    Apr 20Online Application Start
    May 1Online Application-Registration Ends at 05.30 PM
    May 17 - 30Mock Examination
    May 17 - 31Hall Ticket download from website
    Jun 01Computer Based Exams at Exam centres
    Jun 10Result Publishing in www.nimionlineadmission.in website*
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