प्रेरण
वस्तुत: किसी वस्तु के भाव तथा गुण द्वारा उत्पन्न होनेवाले प्रभाव को प्रेरण (Induction) कहते हैं, जब कि दोनों वस्तुओं का संस्पर्श न हो। इस प्रकार जब कोई वस्तु दूसरी वस्तु से अलग होते हुए भी उसपर अपना प्रभाव आरोपित करती है, तब उसे प्रेरण कहा जाता है। विद्युत् इंजीनियरी में तीन प्रकार के प्रेरण प्रभाव होते हैं :
- 1. विद्युत्स्थैतिक प्रेरण (Electrostatic Induction)
- 2. चुंबकीय प्रेरण (Magnetic Induction)
- 3. विद्युच्चुंबकीय प्रेरण (Electromagnetic Induction)
विद्युत्स्थैतिक प्रेरण में कोई वस्तु, निकटवर्ती विद्युच्चालकों पर, आवेश (charge) प्रेरित करती है। जब कोई विद्युत् आवेशित पदार्थ, पृथ्वी से विद्युतरोधी (insulated) किसी संचालक के निकट आता है, तब चालक के कुछ इलेक्ट्रॉन आवेशित हो जाते हैं और चालक के एक सिरे पर एकत्रित होकर पूरे चालक को ही आवेशित कर देते हैं। यह क्रिया, वास्तव में आवेशित हो जाते हैं और चालक के एक सिरे पर एकत्रित होकर पूरे चालक को ही आवेशित कर देते हैं। यह क्रिया, वास्तव में आवेशित पदार्थ द्वारा प्रेरण से दूसरे विद्युच्चालकों को आवेशित करने की है और विद्युत्स्थैतिक प्रेरण कहलाती है।
चुंबकीय प्रेरण, चुंबकीय क्षेत्र में रखे हुए किसी चुंबकीय पदार्थ द्वारा चुंबकत्व ग्रहण करने की क्रिया है। यदि कोई चुंबकीय पदार्थ किसी दंड चुंबक (bar magnet) के पास लाया जाए, तो उसके ऊपर भी चुंबकीय प्रभाव हो जाएगा।
विद्युच्चुंबकीय प्रेरण, विद्युत् के चुंबकीय गुण का उपयोग कर प्रत्यावर्त धारा (alternating current) प्रवाहित हो रही हो, तो उसका चुंबकीय क्षेत्र भी धारा के अनुरूप प्रत्यावर्ती प्ररूप का होगा। इस प्रकार चुंबकीय अभिवाह (फ्लक्स / flux) का रूप भी प्रम्यावर्ती होगा। यह अभिवाह, निकटवर्ती दूसरी कुंडली के चालकों के साथ संबद्ध होकर अपने प्रत्यावर्ती स्वभाव के अनुरूप ही उनमें विद्युद्वाहक बल या वि.वा.व. (electromotive force or e. m. f.) उत्पन्न करता है। फ़ैरेडे के सिद्धांत के अनुसार, किसी चालक से संबद्ध अभिवाह में परिवर्तन, उसमें वि.वा.ब. की उत्पत्ति करता है; जिसका परिमाण, अभिवाह परिवर्तन की गति के बराबर होता है। इस प्रकार दोनों कुंडलियों में संस्पर्श न होते हुए भी और भिन्न परिपथ होते हुए भी, प्रेरण द्वारा दूसरी कुंडली में वि.वा.ब. की उत्पत्ति हो जाती है और उसका परिपथ पूर्ण होने की दशा में धारा भी प्रवाहित होने लगती है। इस धारा को दूसरी कुंडली के आर पार ए धारामापी (galvanometer) जोड़कर ज्ञात किया जा सकता है। धारामापी का संकेतक कुंडली में धारा की व्युत्पत्ति का संकेत करता है। प्रेरित वि.वा.ब. को एक सुग्राही विश्लेषण धारामापी (voltameter) द्वारा मापा जा सकता है। यह भी ज्ञात होगा कि वोल्टता का परिमाण, दोनों कुंडलियों की लपेट संख्या (number of turns) के अनुपात में है। यदि पहली कुंडली में 100 लपेटें हों और दूसरी में 1000, तो दूसरी कुंडली में प्रेरित वोल्टता पहली कुंडली में आरोपित वोल्टता से 10 गुणा अधिक होगी। विद्युत् संभरण तंत्र (electric supply system) का सबसे महत्वपूर्ण उपकरण, परिणामित्र (transformer) इसी सिद्धांत पर आधारित है। इसके द्वारा कम वोल्टता की विद्युत् शक्ति को अधिक वोल्टता पर परिवर्तित कर दूर दूर तक पारेषित किया जाता है और फिर उसी प्रकार उसे कम वोल्टता पर परिवर्तित कर उपयोग में लाया जा सकता है।
विद्युच्चुंबकीय प्रेरण, दो रूप में हो सकता है। एक तो स्थैतिक रूप में, जैसा ऊपर कहा गया है, जिसमें दोनों कुंडलियाँ स्थैतिक होती हैं और वि.वा.ब. की उत्पत्ति, अभिवाह बंधता (flux linkage) में परिवर्तन के कारण होती है। ऐसा केवल प्रत्यावर्ती धारा में ही संभव है। यदि पहली कुंडली में दिष्ट धारा (direct current) प्रवाहित की जाए तो अभिवाह बंधताओं में परिवर्तन का प्रश्न ही नहीं उठता। परंतु अभिवाह की दिशा एवं परिमाण स्थिर होने पर भी यदि चालक चलनशील हो, तो अभिवाह के काटे जाने के फलस्वरूप, उसमें वि.वा.व. की उत्पत्ति होगी। वस्तुत:, अधिकांश विद्युत् मशीनें इसी सिद्धांत पर आधारित है। यदि कोई चालक किसी चुंबकीय क्षेत्र में घूमता हो, तो उसमें एक वि.वा.व. की उत्पत्ति होती है। इस प्रकार उत्पन्न हुए वि.वा.व. को गतिकीत: प्रेरित वि.वा.व. (Dynamically Induced E.M.F.) कहते हैं और सभी विद्युज्जनित्र, इस सिद्धांत पर आधारित हैं।
प्रेरण के सिद्धांत पर केवल वि.वा.व. की ही उत्पत्ति नहीं होती; वरन् एक विभ्रमबल की उत्पत्ति भी हो सकती है। घूर्णी चुंबकीय क्षेत्र में चालकों पर यह बल क्रियाशील होता है, जो उन्हें घुमा सकता है। प्रेरण मोटर स्पष्टता इसी सिद्धांत पर आधारित है। यह सिद्धांत, वस्तुत:, विद्युत् ऊर्जा के यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तन और यांत्रिक ऊर्जा के विद्युत् ऊर्जा में परिवर्तन को व्यक्त करता है।
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